पंछी

आसमां में एक पंछी उड़ रहा है,

पंख फैलाये वो पंछी आजाद जी रहा है।

मैंने देखा है एक और पंछी को,

पर बंद है वो एक पिंजरे में।

एक वो है जो आसमान नाप रहा है,

और एक ये जो जी रहा है क़ैद में।

पर एक सवार जो ही मेरे जहन में,

की क्या उसकी इच्छा नहीं?

की वो भी पंख फैलाए खुले आसमां में।

या यूं कहें कि खुदगर्ज इंसान ने छीन ली,

उसकी ये आजादी पैसे के गुरूर में।

ऐ मेरे दोस्त मत करो तुम ऐसा,

मत चीनी किसी की खुशियां और आजादी।

तुम भी जीयो सुकूं से अपने आशियाने में,

उन्हें भी जीने दो खुशी से अपने आशियाने में।

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Nikita Chauhan

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Nikita Chauhan

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